गया पितृपक्ष मेला गाइड: जिनकी अकाल मृत्यु हो उनके लिए 975 फिट ऊंची पर पिंडदान, गया में पितृपक्ष मेला का आयोजन।
क्या होता है पितृ पक्ष।
अश्विन माह के कृष्ण पक्ष को पितृपक्ष कहा जाता है इसको श्राद्ध पक्ष के नाम से भी जाना जाता है पितरों की आत्मा की शांति के लिए पितृपक्ष का समय को विशेष माना गया है और पितृपक्ष के 16 दिनों में श्राद्ध कर्म किया जाता है इसके लिए इन दिनों में तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध करने की परंपरा है जबकि पिंडदान वैसे तो पूरे साल किया जा सकता है, लेकिन पितृपक्ष में पिंडदान करने का विशेष महत्व रखता है और इसके लिए माना जाता है कि पूर्वजों की मुक्ति के लिए इस दौरान पिंडदान करना जरूरी होता है।
लोकल कनेक्टिविटी का होना।
बताया जा रहा है कि गया पहुंचने के बाद तीर्थयात्री ऑटो से विष्णुपद मंदिर के लिए चांदचौरा मोड़ तक आ सकते हैं। यहां से करीब 800 मीटर पैदल यात्रा करनी होगी।
गया जंक्शन से चांदचौरा मोड़ की दूरी 3 किलोमीटर है। यहां का किराया 20 रुपए प्रति व्यक्ति तय किया गया है।
इसके अलावा मेले के दौरान 24 घंटे फ्री सिटी बस सेवा भी उपलब्ध रहती है, जो चांदचौरा मोड़ (विष्णुपद मंदिर) और प्रेतशिला तक जाती है।
बुजुर्ग तीर्थ यात्रियों के लिए चांदचौरा से विष्णुपद मंदिर तक जाने के लिए प्रशासन फ्री ऑटो रिक्शा की व्यवस्था करता है।
ठहरने और खाने-पीने की व्यवस्था।
कुछ तीर्थयात्री पंडा को अपना तीर्थ गुरु मानकर उनके घर भी ठहरते हैं। ठहरने के इंतजाम को लेकर गया में छोटे-बड़े 111 होटल हैं। जिसमें हर तरह की सुविधा उपलब्ध है। सामान्य होटल के एसी डबल बेड रूम का किराया 3000 रुपए है। सामान्य रूम का किराया 1200 से लेकर 1500 है। इनके अलावा 507 निजी घर और धर्मशालाओं में ठहरने की व्यवस्था होगी। बोधगया के निगमा मोनेस्ट्री में 2500 यात्रियों के ठहरने का निःशुल्क इंतजाम है। तीर्थ यात्रियों के लिए कई मोनेस्ट्री रिजर्व रखी गई हैं।
खाने-पीने की व्यवस्था खाने-पीने की व्यवस्था, हर निजी होटल, रेस्टोरेंट में है। मेला क्षेत्र में कई ढाबे भी हैं। पंडों के घर में ठहरने वाले यात्री खुद भोजन बनाते हैं। धर्मशाला के पास भी होटल, ढाबा, रेस्टोरेंट हैं। सभी बिना लहसुन-प्याज के शुद्ध शाकाहारी भोजन कराते हैं।
श्राद्ध पक्ष की कुल 16 तिथियां।
17 सितंबर पूर्णिमा का श्राद्ध
18 सितंबर प्रतिपदा का श्राद्ध
19 सितंबर द्वितीया का श्राद्ध
20 सितंबर तृतीया का श्राद्ध
21 सितंबर महा भरणी श्राद्ध
21 सितंबर चतुर्थी का श्राद्ध
22 सितंबर पंचमी का श्राद्ध
23 सितंबर षष्ठी का श्राद्ध
23 सितंबर सप्तमी का श्राद्ध
24 सितंबर अष्टमी का श्राद्ध
25 सितंबर नवमी का श्राद्ध
26 सितंबर दशमी का श्राद्ध
27 सितंबर एकादशी का श्राद्ध
29 सितंबर द्वादशी का श्राद्ध
29 सितंबर मघा श्राद्ध
30 सितंबर त्रयोदशी श्राद्ध
1 अक्टूबर चतुर्दशी का श्राद्ध
2 अक्टूबर सर्वपितृ अमावस्या
गया में 365 दिन होता है पिंडदान।
पंडा अभिषेक झा के मुताबिक यहां 365 दिन पिंडदान होता है। पितृपक्ष में पिंडदान का विशेष महत्व है, इसलिए समय के हिसाब से ही लोग पिंडदान करते हैं। सबसे प्रचलित 3 वेदी का पिंडदान है, जिसमें एक से दो दिन में पिंडदान पूरा हो जाता है।
मारवाड़ी परिवार 45 वेदी का पिंडदान करते हैं। वह दो दिन पहले ही गया में आ जाते हैं, 17 दिन रहकर पितरों का पिंडदान करते हैं।
पिंडदान के लिए व्यवस्था
गया में पिंडदान के लिए कई वेदियां हैं, जिनमें विष्णुपद, रामशिला, धर्मारण्य, प्रेतशिला, कागबली, अक्षयवट मुख्य है। सभी प्रमुख पिंड वेदी स्थल पर टेंट लगाए गए हैं। विष्णुपद फल्गु घाट पर जर्मन टेंट लगाए जाते हैं, जहां एक बार में 20-25 हजार लोग पिंडदान कर सकते हैं।
ठहरने की व्यवस्था तीर्थ यात्रियों के लिए गया प्रशासन की ओर से टेंट सिटी और कई सरकारी स्कूलों में ठहरने की व्यवस्था मुफ्त में की गई है। टेंट सिटी में लोगों को कूलर, फैन, शौचालय, ड्रिंकिंग वाटर, बाथरुम, चेंजिग रूम की सुविधा मिलेगी। सुबह मुफ्त चाय और रात के समय खाना निःशुल्क मिलेगा।
पंडों की जानकारी के लिए काउंटर गया में कुल 250 परिवार है, जिसमें करीब 1300 पंडा हैं। तीर्थयात्री अपने इलाकों के पंडा की जानकारी अपने खानदान-परिवार के बुजुर्गों से लेकर आते हैं। इलाकावार पंडा की जानकारी देने के लिए गया जंक्शन पर जिला प्रशासन भी काउंटर बनाता है।
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