गणेश की पूजा: गणेश की पूजा से जुड़ी बाते, क्यों होती है गणेश की सूंड दयानि या बायिनी ओर, इसके मायने जाने जानने साथ पूरी कहानी।
मंदिरों में गणेश की मूर्ति की पूजा होती है पर एक सवाल कि क्यों हमेशा विष्णु, बह्म, महेश से भी पहले गणेश की पूजा की जाती है
गणेश जी की सवारी के मायने।
1.शेर पर सवार 10 हाथ वाले गणेशः ये रूप ईर्ष्या की प्रवृत्ति को नियंत्रित करता है।
2.मोर पर सवार गणेशः ये चोरी और कामुकता की प्रवृत्ति को नियंत्रित करता है।
3.मूषक पर सवार एकदंत: गणेश का एक दांत एकाग्रता यानी फोकस का प्रतीक है और मूषक इच्छाओं का। ये रूप एकाग्रता के साथ इच्छाओं को नियंत्रित करता है।
4.मूषक पर दो दांतों वाले गणेशः अभिमान, लालच और अज्ञान से उपजे मोह को ये रूप नियंत्रित करता है।
5.तीन आंख वाले गणेशः ये स्वरूप गुस्से को नियंत्रित करने के लिए है। इस रूप में उनकी नाभि में शेषनाग है और मूषक की सवारी है।
6.शेषनाग पर सवार गणेशः ये रूप आत्मनिरीक्षण के जरिये अहंकार यानी Ego को नियंत्रित करता है।
गणेश जी की सूंड की दिशा बदलने की वजह।
गणेश की सूंड दांईं ओर घूमी हुई हो,तो ये पिंगला नाड़ी से जुड़ी, पौरुष ऊर्जा का प्रतीक है। ऐसे गणेश को दक्षिणामूर्ति भी कहते हैं। ये सिद्धि और साधना के प्रतीक हैं इसलिए सिध्दि विनायक भी कहते हैं। सामाजिक बल बढ़ाने या किसी भी योग को सिध्द करने की कामना रखने वाले दक्षिणामूर्ति गणेश की पूजा करते हैं।
गणेश की सूंड बांईं ओर घूमी हुई हो, तो ये इडा नाड़ी से जुड़कर शरीर के चंद्र प्रणाली पर असर करता है। यह स्त्री शक्ति के प्रतीक हैं। अधिकतर घरों में गणेश जी की ऐसी ही मूर्ति पाई जाती है। ये मानसिक शीतलता, सुख और आनंद के प्रतीक हैं।
गणेश की सूंड सीधी हो, तो सुषुम्ना नाड़ी से जुड़ा ये रूप ऊर्जाओं को संतुलित करने का प्रतीक है। इसकी पूजा करने वाले भी संतुलन की कामना करते हैं।
गणेश की सूंड ऊपर हो, तो ऊपर की ओर सूंड वाले गणेश अध्यात्म को जगाने वाले माने जाते हैं। ये उच्च कुंडलिनी शक्ति को जागृत करते हैं।
गणेश के अवतार के 8 रूप।
गणेश पुराण और मुदगल पुराण के मुताबिक हर युग में गणेश का एक अवतार हुआ है। इसमें सतयुग में महोतकट, त्रेता युग में श्री मयूरेश्वर, द्वापर युग में गजानन और कलियुग में धूम्रकेतु।
हर अवतार के ये 8 रूप हैं।
1.वक्रतुंड
2.एकदंत
3.महोदर
4.गजाननावतार
5.लंबोदरावतार
6.विकटावतार
7.विघ्नराजावतार
8.धूम्रवर्णावतार।
पार्वती के मैल से बने पुत्र ने देवताओं को हराया।
गणेश पुराण के दूसरे खंड के पहले अध्याय में एक कथा है कि सखियों जया और विजया के कहने पर पार्वती ने अपने मैल से एक गण को जन्म दिया और पार्वती ने गण को आदेश दिया कि किसी को भी उनके भवन में प्रवेश न करने दे जबकि इस बालक ने भगवान शिव को अंदर जाने से रोका तो उन्होंने अपने गणों को आगे भेजा। बालक ने पहले सभी गणों को और फिर ब्रह्मा, विष्णु और सभी देवताओं को युद्ध में हरा दिया था।
                
                
                          
                          
                          
                          
                          
                          
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