जन्माष्टमी स्पेशल: कही 1280 किलो सोने से बनी प्रतिभा तो और कही मूछों वाले कृष्ण की प्रतिभाएं आई नजर, जन्माष्टमी के दिन अलग अलग कृष्ण की प्रतिभाएं।
प्रतिमा की खास बातें।
बांके बिहारी मंदिर वृंदावन (उत्तर प्रदेश) के बांके बिहारी की प्रतिमा काले रंग की है और इसके राधा के भी दर्शन होते हैं। बांके बिहारी त्रिभंग स्वरूप में हैं यानी उनका सिर, कमर और पैर मुड़े हुए हैं।
ठाकर श्री राधा स्नेह बिहारों।
हर साल सिर्फ अक्षय तृतीया पर बांके बिहारी के चरणों के दर्शन होते हैं बांके बिहारी के हाथ में बांसुरी सिर्फ शरद पूर्णिमा पर पकड़ाई जाती है।
ऐतिहासिक तथ्य।
15वीं शताब्दी के प्रसिद्ध संत, कवि और संगीतकार स्वामी हरिदास ने सबसे पहले इस मूर्ति का वर्णन किया जबकि ये प्रतिमा निधिवन में थी। 1864 में हरिदास के शिष्य जगन्नाथ दास ने बांके- बिहारी मंदिर बनवाया और मूर्ति वहां रखी गई और मंदिर का मौजूदा स्ट्रक्चर 1917 में बनकर तैयार हुआ।
बंशीधर मंदिर ऊंटारी, गढ़वा (झारखंड)।
इस प्रतिमा की खास बातें है कि शेषनाग के फन से बने 24 कलियों वाले कमल पर विराजी बंशीधर की प्रतिमा दुनिया की सबसे कीमती कृष्ण प्रतिमाओं में है। बंशीधर की प्रतिमा जमीन से 4-5 फीट ऊपर नजर आती है, लेकिन शेषनाग वाला हिस्सा जमीन के अंदर दबा है।
ये मूर्ति 1280 किलो यानी 13 क्विंटल सोने से बनी है। सिर्फ सोने की मौजूदा कीमत करीब 850 करोड़ रुपए है। इसकी एंटीक वैल्यू इससे कहीं ज्यादा होगी।
इसके ऐतिहासिक तथ्य इस तरह है कि इस मूर्ति के ओरिजिन का ठीक-ठीक पता नहीं। 1827 में ऊंटारी राजघराने की रानी शिवमानी कुंवर को कनहर नदी के किनारे खुदाई में ये मूर्ति मिली थी। 1828 में इसे मंदिर में स्थापित किया गया। बंशीधर के साथ वाराणसी से लाई गई अष्टधातु की राधा की मूर्ति भी है।
श्रीकृष्ण जन्मभूमि मथुरा (उत्तर प्रदेश)।
यह प्रतिमा उत्तर प्रदेश में है कि मंदिर के गर्भगृह में बाल गोपाल विराजित हुए है और यहां जन्माष्टमी को सबसे बड़ा उत्सव मनाया जाता है।
इसकी खास बात है कि मंदिर में राधा और कृष्ण की बड़ी प्रतिमा भी स्थापित है। यहां श्रीकृष्ण श्वेत वर्ण में दिखाई देते हैं और हाथों में बांसुरी है। द्वापर युग में कंस ने देवकी और वसुदेव को मथुरा के कारागार में बंद कर रखा था, उस समय भगवान विष्णु ने देवकी के गर्भ से श्रीकृष्ण के रूप में आठवां अवतार लिया था।
चित्तौड़गढ़ (राजस्थान)।
राजस्थान प्रतिमा की खास बातें में शामिल है कि मंदिर में श्रीकृष्ण को सांवरिया सेठ के रूप में पूजा जाता है परंतु यहां भगवान की श्याम वर्ण प्रतिमा स्थापित है भगवान की बड़ी-बड़ी आंखें दिखाई देती हैं। सांवरिया के हाथों में बांसुरी मौजूद है।
माइयोलॉजिस्ट देवदत्त पट्टनायक के मुताबिक।
500 साल पहले उत्तर भारत पर मुगलों का वर्चस्व था। उसी दौरान समूचे आहत में भक्ति समय पनपाः। अलग-अलग दोत्रों में लोगों ने कृष्ण के दिभित्र रूपी की भांति की और उससे जुड़े काम लिखें थे।
बंगाल की बाल पोया में कृष्णा को केष्टी कहा जाता है और चैतन्य महाराम्भु की वजह से कृष्ण की मुरलीधर छवि प्रचलित हुई है। असल में यह असम की शंकरदेव पांपरा में कृष्ण की माध्य कहा जाता है और प्राचीन तमिल साहित्य में मान नामक याला देवता का उल्लेख है।
कर्नाटक में कृष्ण की मैज्ञाकेशन के रूप में हाली नन्हें कृष्षण के रूप में पूजा जाता है। केस में उन्हें गुरुनासूर के रूप में पूजते हैं।
महाराष्ट्र के बरपुर में कृष्ण को विदुल के रूप में रखुमाई यानी रुक्मिणों के साथ पूजा जाता है। विहुत ईट पर साढ़े दिखाई देते हैं।
आंध्र प्रदेश में तिरुपति की बतुर्भुज विष्णु जैसी दिखती है, लेकिन इसकी श्रीद गौपाल कहा जाता है।
चेन्नई के एक चिरल मंदिर में कृष्णा को धर्मसारमी कहा जाता है। पाळीवरची की छवि विशाल है और
उसमें उनकी मूंछ भी है।
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