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पराली न्यूज: पराली के धुएं से बड़ रहा खतरा, लोगो की जान बचने के लिए किसान खाद में कर सकते वृद्धि।

खाद को छोटे बड़े किसान अपनी तरह से करते है इसका उपयोग जैसे कि छोटे व मझोले किसान धान की पराली को पशुओं के चारे के रूप में इस्तेमाल कर लेते है वही बड़े किसान है जो इस  पराली को खेत में ही जला देते हैं लगभग पांच साल पहले भिंड जिले में पराली जलाने का चलन शुरू हुआ था जो अब बढ़ता जा रहा है।

डा. शिवराम सिंह कुशवाह ने बताया कि पराली से निकलने वाली जहरीला धुंआ मानव के साथ पशु पक्षियों के लिए बहुत खतरनाक है इसका धुंआ सांस के द्वारा शरीर के अंदर जाता है इससे पशुओं में खुजली जैसे रोग पैदा होते है उप संचालक कृषि रामसुजान शर्मा बताते है कि इस तरह की पराली जलने से जो जहरीली निकलती है ये गैस पेड़ पौधों को काफी नुकसान पहुंचाती है। खेतो में पड़ी मिट्टी के जीवांश इससे नष्ट हो जाते हैं।

मिट्टी में पाई जाने वाले प्रमुख पोषक तत्व जैसे नाइट्रोजन, फास्फेट और पोटाश एवं द्वितीय तथा सूक्ष्म तत्व सल्फर, जिंक, लोहा, कापर व मैगनीज की मात्रा में कमी आ जाती है इससे फसल का उत्पादन कम हो जाता है।

कंपोस्ट खाद का इस्तेमत में आना।

कंपोस्ट खाद ऐसे परिस्थिति होती है कि सूक्ष्म जीवों के नाम पर मिट्टी में छोटे छोटे जीवों के विकास का समर्थन करते हैं ये वैक्टेरिया और कवक ही होते है इनको केवल एक तरह से सूक्ष्मदशक का उपयोग कर के देखा जा सकता है ऐसा जरूरी है कि जब कम्पोस्ट ढेर गर्म हो जाता है तो एक तरह से कचरे की सामग्री के रूप में प्रतीत होने पर वे इस तरह से पदार्थों में पोषक तत्वों को छोड़ देते हैं, जिनका उपयोग फसल और पौधों में किया जा सकता है।

कंपोस्ट खाद के फायदे।

यदि किसान कंपोस्ट खाद को बना लेते है तो इससे लाखों रुपये बचाए जा सकते हैं इसके लिए उप संचालक कृषि शर्मा बताते है कि अच्छी तरह सड़े हुए पौधों और पशु अवशेषों को कम्पोस्ट खाद कहा जाता है कम्पोस्ट खाद से मतलब है कि खेतो में प्रयोग खाद से पहले उसको अच्छी तरह सड़ा लेना चाहिए फिर कम्पोस्ट की आवश्यकताओं में हवा, नमी, अनुकूल तापमान और नाइट्रोजन की एक छोटी मात्रा रहनी चाहिए।

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