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रिलेशनशिप: मन में न होने दे रावड़ जैसे भाव, प्रेम, लगाओ को रखे करीब, रिश्ते के वो सबक जो सीता राम से सीखे जाये।

एक कहानी जोकि राम जी से जुड़ी हुए है इस कहानी में भगवान श्रीराम का वनवास के 13वां साल चल रहा होता है और वनवास के 14 वर्ष पूरे कर अयोध्या लौटने की तैयारी करी जा रही होती है जोकि त्रेता युग में है। इस दौर माता सीता का हरण कर लिया जाता है और तभी सीता का हरण हो जाने से तीनों लोकों के स्वामी माने जाने वाले राम व्याकुल हो उठे है। इससे दौर में बरसात का महीना था जिसमें सीता को ढूंढने राम-लक्ष्मण दोनो वन-वन निकले है बादलो के गरजने की तेज आवाज जिसने राम के मन को डराया क्योंकि उनकी प्रेय सीता उनके साथ नही थे तब उन्होंने लक्ष्मण से अपने मन की बात इस तरह बताई-

'घन घमंड नभ गरजत घोरा। प्रिया हीन डरपत मन मोरा ॥'

राम अपनी पत्नी सीता के वियोग में विरहाकुल है तभी उन्हें समझाते लक्ष्मण बोल उठे।

राम जो खुद जगत के सबसे बड़े योद्धा हैं जिसके एक इशारे पर कौशल की रघुकुल सेना, श्रृंगवेरपुर में मित्र निषादराज का कुनबा और जंगल में भालू - रीछ-वानर का दल ऐसा है जोकि कुछ भी कर गुजरने को तैयार है और ऐसा वीर इसको बड़े से बड़ा दानव भी डरा नहीं सका वो विशाल मन अपनी पत्नी सीता के विरह में परेशान है जो अपने इस डर को बताने से गुरेज भी नहीं करते है।

इसलिए ही राम बच्चों की तरह व्याकुल हो उठे है और जंगल में हर किसी से सीता का पता पूछते है।

'हे खग मृग हे मधुकर श्रेनी । तुम्ह देखी सीता मृगनैनी ॥'

राम सीता को खोजने लगते है और लताओं-पत्तों, पशु-पक्षियों और कीट-पतंगों तक सबसे ही पूछते हैं कि क्या तुमने हिरण जैसी आंखों वाली मेरी सीता को कहीं देखा है।

कल का दिन विजयादशमी का था और इसके दिन ही मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम सीता और लक्ष्मण संग रावण और उसके अहंकार पर जीत हासिल करके अयोध्या लौटे थे, इस विजय से ही राम और रामायण से काफी सारी चीजें सीखी जा सकती हैं।

जब बात रिश्तो के परिप्रेक्ष्य में आती है प्रेम में प्रेरणा लेने की बात का होना है तब तो सहज और युगल दोनो में राधा-कृष्ण आते हैं निश्चित रूप से दोनों प्रेम के अनूठे उदाहरण रहें है। राधा-कृष्ण के प्रेमी रिश्ते की तरह ही राम सीता का वैवाहिक रिश्ता परिपक्व और प्रेमी है।

प्रेम का दर्जा ही सबसे ऊंचा।

राहुल चौधरी 'नील' (लेखक व सांस्कृतिक मामलों के जानकार) है 

'एहि बिधि खोजत बिलपत स्वामी । मनहुं महा बिरही अति कामी ॥'

भगवान राम माता सीता को खोज में इस तरह विलाप हुए कि ऐसा प्रतीक होने लगा कि कोई महाविरही और अत्यंत कामी पुरुष है इस तरह के स्वरूप को देखकर गोस्वामी तुलसीदास ने कहा कि राम देवत्व सीता को खोकर आम मनुष्य की तरह व्यवहार कर रहे हैं, इस तरह का व्यवहार सिर्फ और सिर्फ अपनी पत्नी सीता के लिए कर रहें है।

 'पूरकनाम राम सुख रासी । मनुजचरित कर अज अबिनासी॥'

रिश्ते में बिना कहे भी मन की बात समझना जरूरी है।

राम जिसके लिए ऐसा व्यवहार कर रहें है वो सीता भी उनके कहे बिना उनके मन की बातें को जानते है।

रिश्ते में रहते हुए खुशियां और गम दोनों को साझा।

राम जब वन जाते है तो वो सोचते है की सीता को अयोध्या में ही रुके क्योंकि जंगल बहुत कठिन है तरह-तरह के खतरनाक जानवरो का बसर है।

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