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सेम सेक्स मैरिज का विवाद: समलैंगिक संबंधों में नही हो सकती शादी, सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला समलैंगिक का संबंध सही पर शादी होने जायस नही।

11 मई को सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की बेंच ने सेम सेक्स मैरिज पर अपना फैसला सुरक्षित रख दिया था, पर अब 160 दिन बाद इस पर फैसला सुनाया गया है जिसमें कुल 4 जजमेंट और न्यायाधीशों की राय सामने आई इसको लेकर ही एक बड़ा सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक पर दिया है कि इस समलैंगिक शादी को मान्यता नही दी जा सकती है और शादी को मान्यता देने से इनकार कर दिया है। CJI ने इसको संसद के अधिकार क्षेत्र मामला बताया है हालांकि कोर्ट ने फैसले में समलैंगिक जोड़ों को कई तरह के अधिकार देने की बात कही है।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले की बाते।

चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस हिमा कोहली, जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस रविंद्र भट्ट और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की संविधान पीठ ने इस मामले की सुनवाई करें और फैसला सुनाया, इस दौरान सुप्रीम कोर्ट के वकील विराग गुप्ता ने बताई इस फैसले की 5 प्रमुख बाते बताई कि

1. भारत में जितने भी धर्म है जैसे हिन्दू, सिख, जैन, ईसाई आदि इन सभी धर्मों में शादी के लिए संसद से कानून बने हैं। और 

सभी धर्मों की शादियां उनके रीति रिवाजों से होती आई है और  एक धर्म से दूसरे धर्म के लोगो से शादी करने के लिए विशेष विवाह कानून बना है, जिसके तहत सेम सेक्स मैरिज के रजिस्ट्रेशन की मांग की गई इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि कानून में संशोधन का अधिकार संसद के पास है इसलिए याचिकाकर्ताओं की मुख्य मांग जो है इसको सभी जजों ने बहुमत के फैसले से खारिज कर दिया गया है।

2. केंद्र सरकार ने जो हलफनामे दिया हैं इसको देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकों से जुड़ी समस्याओं के समाधान करने के लिए  उच्चाधिकार समिति के गठन करने को कहा है लेकिन इसको सिविल अधिकार देने के बारे में संविधान पीठ के 5 जजों के बीच मतभेद चल उठा है।

3. वैसे तो सभी जजों का ये मानना है कि ट्रांसजेंडर्स को शादी करने का अधिकार है और इस फैसले के अनुसार समलैंगिकों को अपने पार्टनर रखने की भी स्वतंत्रता है, लेकिन ऐसा करने पर ट्रांसजेंडर्स के लिए अधिकारों को लागू करने के लिए कानून में बदलाव करना होगा। जैसे की बैंक खाते, पेंशन, राशन आदि के अधिकारों को देने के लिए अल्पमत का फैसला संविधान के अनुच्छेद-141 के तहत देश का कानून नहीं माना जा सकता। हालांकि, प्रशासनिक आदेश से इन्हें लागू करने के लिए दबाव बनाने की कोशिश की जा सकती है।

4. भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 के अनुसार भारत के नागरिकों को जीवन और समानता का अधिकार देना है  और उनके अधिकारों के साथ कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता है जहा तक बात है अल्पमत के फैसले की तो सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस को भी अनेक निर्देश दिए है कि, समलैंगिक जोड़ों के साथ किसी तरह की जोर जबरदस्ती नहीं हो सकती। उनके खिलाफ यदि एफआईआर करना है तो इससे पहले प्रारम्भिक जांच करना जरूरी होगी। 

5. भारत में समलैंगिक जोड़ों को लिव-इन जैसा दर्जा देने के लिए किए कानूनी व्यवस्था नहीं बनाई गई है क्योंकि ऐसा होने पर और बाकी वैवाहिक और सामाजिक व्यवस्था में अराजकता आ सकती है और अगर ऐसा हो जाता है तो इस फैसले के बाद समान नागरिक संहिता को लागू करना बड़ी चुनौती बन जाएंगी।

समलैंगिक शादी की माग।

समलैंगिक में शादी करना दो उदाहरण आपके सामने है पहला ये कि आप बेहोशी की हालत में अस्पताल में भर्ती हो गए है और डॉक्टर इलाज करने से पहले किसी परिजन के साइन चाहते है तो आपका साइन स्वीकार नहीं क्योंकि आप शादीशुदा नहीं हो।

दूसरा आप एक हाउसिंग सोसाइटी में साथ रहने के लिए घर लेने जा रहे है पर आपको ये कहते हुए इनकार कर दिया जाता है कि आप शादी-शुदा नहीं हो।

यही बात है कि शादी करने के बाद ऐसे तमाम प्रिविलेज, अधिकार और सामाजिक मान्यताएं मिल जाती हैं, लेकिन सेम सेक्स कपल्स की शादी भारत में लीगल नहीं है और वो इससे हमेशा वंचित रह जाते हैं। सेम सेक्स मैरिज को मान्यता देने के लिए दिल्ली हाईकोर्ट में दो याचिकाएं दायर की गई थीं।

समलैंगिक शादी से जुड़ी सभी याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट ने बुला लिया और याचिकाकर्ता सुप्रियो चक्रवर्ती और अभय डांग का कहना है कि वो दोनो 10 साल से कपल की तरह रह रहे हैं और शादी करना चाहते हैं दूसरी ओर याचिकाकर्ता पार्थ और उदय राज 17 साल से टिलेशनशिप में हैं और वो समलैंगिकों की शादी को मान्यता दिलाना चाहते हैं।

क्या आधार है सेम सेक्स मैरिज की मान्यता के।

वैसे तो 34 देश ऐसे है जिसने सेक्स मैरिज को कानूनी मान्यता दे दी है और अमेरिका एक ऐसा देश था जिसके एक राज्य ने पहली बार सेम सेक्स कपल को मैरिज लाइसेंस जारी किया अमेरिका में सेम सेक्स को कानूनी मान्यता 2015 में मिली।

नीदरलैंड दुनिया का पहला देश था, जिसने 2001 में सेम सेक्स गेटिज को कानूनी मान्यता दे दी।

आयरलैंड पहला देश था जिसने 2015 में रेफरेंडम के जरिए सेम सेक्स मैरिज को लीगलाइन किया।

एशिया में अभी तक सिर्फ ताइवान इकलौता देश है, जहां सेम सेक्स मेटिज को कानूनी मान्यता मिली है। इन देशों में सेम सेक्स मेटिज को कानूनी मान्यता मिलने के 3 प्रमुख आधार बताए गए है 

1.समानता, समलैंगिक शादी को मान्यता न देना भेदभाव करना होगा क्योंकि कानून में सबको बराबर अधिकार मिलने चाहिए।

2.स्वतंत्रता,अपनी पसंद के शख्स से शादी करना एक मौलिक ह्यूमन राइट है चाहे वो किसी भी जेंडर का क्यों न हो।

3.सोशल वेनेफिट्स, शादी के कई सामाजिक फायदे होते हैं। समलैंगिक को हमेशा के लिए इससे वंचित नहीं किया जाना बताया गया है।

समलैंगिक का इतिहास।

प्राचीन मेसोपोटामिया से लेकर प्रचानी युनान, चीन, जापान और अन्य सभ्यताओं तक फैली हुई है ये 'ए हिस्ट्री ऑफ द वाइफ' में मलिन यालोम कहती हैं कि दूसरी और तीसरी सदी के टोम में समलैंगिक शादियां बेहद आम हो गई थीं। ईसाई और इस्लाम धर्म के उभार के साथ समलैंगिकों का शोषण बढ़ गया तब करीब करीब 1500 साल तक इन्हें एक कलंक की तरह देखा जाने लगा है। पहले देश 1791 में फ्रांस बना, जिसने समलैंगिकता को अपराध की लिस्ट से बाहर किया गया है धीरे-धीरे अन्य देशों ने भी ऐसा करने लगे। आज फ्रांस, जर्मनी, बेल्जियम, अमेरिका समेत दुनिया के 31 देशों के संविधान में सेम सेक्स के बीच शादी लीगल है।

1861 में ब्रिटिश शासन के दौरान भारत में समलैंगिकता पर पाबंदी लगाई लगा दी गई थी और घाटा 377 के तहत समलैंगिक संबंधों की सजा देने का कानून बनाया गया। भारत में 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकों के बीच सेक्स को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया और इसके बाद भारत में समलैंगिक शादी अभी भी लीगल नहीं है इसी मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में 5 जजों की बेंच सुनवाई कर रही है।

अपने अधिकारों के लिए 230 साल से लड़े है समलैंगिक।

1791फ्रांस पहला देश जिसने होमोसेक्सुअलिटी को अपराध की लिस्ट से बाहर किया। फिर 1897 में जर्मनी की राजधानी बर्लिन में दुनिया की पहली LGBTQ + संस्था साइंटिफिक ह्यूमेनिटेरियन कमेटी बनी। 1933 अमेरिका में पहली बार LGBTQ समुदाय के लिए मैटाचिन सोसाइटी का गठन किया गया। 1953 अमेरिकी राष्ट्रपति ड्वाइट डी. आइजनहावर ने LGBTQ+ की पहचान कर उन्हें नौकरी से बाहर निकालने का आदेश दिया। 28 जून 1969 को न्यूयॉर्क शहर के गे बार ,1969 स्टोनवॉल इन में पुलिस ने रेड मारी थी इसके बाद देश में हिंसक विरोध प्रदर्शन हुआ।

अमेरिकन साइकियाट्रिक एसोसिएशन ने 1969 में समलैंगिकों को मानसिक बीमार मानने से इनकार कर दिया। 1978 LGBTQ + के लिए रेनबो झंडे को पहली बार सैन फ्रांसिस्को में फहराया गया था। 1989 डेनमार्क समलैंगिक नागरिक संघों को मान्यता देने वाला पहला देश बना। 2009 आईसलैंड में LGBTQ जोहाना सिगुराडोटिर को प्रधानमंत्री चुना गया। 2013 अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने 5 समलैंगिक पुरुषों को राजदूत नॉमिनेट किया। अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने सेम सेक्स विवाह करने पर लाभ प्रदान किया। भारत में 2018 तक सेम सेक्स के बीच शादी अपराध थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे खत्म कर दिया। 2020 रूस ने संवैधानिक तौर पर एक अमेंडमेंट लाकर सेम सेक्स मैरिज को देश में बैन कर दिया।

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