बेमौसम फसल उगाने से हुआ लाभ, डेढ़ एकड़ जमीन पर लगाया ज्वार, मिला 40 कुंटल फायदा।
सामान्य बात है कि खरीफ के सीजन में ज्वार की खेती होती है, लेकिन आज इस एक्टिकल में बात ऐसे किसान की है जिसने रिस्क लिया और बेमौसम फसल उगाई। जैसे की रबी के सीजन में खरीफ की फसल को उगाया और ज्वार को खेत में बोया। ऐसा उसने दोस्त की सलाह पर रिस्क डेढ़ एकड़ में बोवनी करके कामयाबी हासिल की नौ गुना ज्यादा मुनाफा कमाया का हुआ ज्यादा। बात ये थी कि वर्षों से ज्वार की पैदावार नुकसान में चली रही थी इससे वह मुनाफे में पहुंच गई।
100 से 110 दिन में तैयार हो जाता है ज्वार।
अंकुर की प्रक्रिया: 1 से 15 दिन की होती है, वानस्पतिक अवस्था: 16 से 40 दिन की, फिर फूल आना व प्रजनन अवस्था: 41 से 65 दिन इसके बाद परिपक्वता की प्रक्रिया: 66 से 95 दिन पकने का चरण: 96 से 105 दिन होता है।
ज्वार की खेती से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी।
1.ज्वार की फसल सूखे क्षेत्रों में अधिक होती है, क्योंकि यह उच्च तापमान और सूखे की स्थिति को सहन कर सकती है।
2.इस फसल के लिए सबसे बेहतर तापमान 15 डिग्री सेल्सियस से 40 डिग्री सेल्सियस के बीच का रहता है।
3.इसके लिए 400 मिमी से 1000 मिमी की वार्षिक बारिश की आवश्यकता होती है।
4.चिकनी दोमट मिट्टी ज्वार की बेहतर पैदावार के लिए अच्छी होती है।
5.ज्वार का एक लाभ यह भी है कि यह मिट्टी के पीएच मान 6.0 से 8.5 होने पर भी हल्के अम्लता से हल्के लवणता को सहन कर सकता है।
6.ज्वार कुछ हद तक जलभराव के साथ हो सकता है, फसल उगाने के लिए अच्छी जल निकासी की आवश्यकता होती है।
ज्वार का फायदेमंद होना।
ज्वार के नियमित सेवन से ओसोफैगल कैंसर (एसोफैगस एक लंबी, खोखली ट्यूब होती है, जो गले से पेट तक जाती है) उसकी आशंका को कम करता है।
ब्लड शुगर के स्तर को नियंत्रित करता है, इसलिए मधुमेह के रोगियों के लिए अच्छा है।
लाल रक्त कोशिका के विकास के लिए अच्छा होता है और अच्छे कैल्शियम के स्तर को बनाए रखने में मदद करता है।
ऑस्टियोपोरोसिस और गठिया रोग से बचाने में भीउपयोगी है।
मेलेनोमा को रोक सकता है, जो त्वचा कैंसर का एक प्रकार है।
यह आपकी ऊर्जा के स्तर को बढ़ाता है इसमें विटामिन बी 3 होता है।
ज्वार की शुरुआत में खेती करना।
ज्वार की शुरुआत में खेती करने में उसमें उचित मात्रा में गोबर की खाद डाल दें उसके बाद फिर से खेत की जुताई कर खाद को मिट्टी में मिला दें।
खाद को मिट्टी में मिलाने के बाद खेत में पानी चलाकर खेत का पलेव कर दें पलेव के तीन से चार दिन बाद जब खेत सूखने लगे तब रोटावेटर चलाकर खेत की मिट्टी को भुरभुरा बना लें।
उसके बाद खेत में पाटा चलाकर उसे समतल बना लें ज्वार के खेत में जैविक खाद के अलावा रासायनिक खाद के तौर पर एक बोटी डीएपी इस्तेमाल करें।
ज्वार की फसल में होने वाली बीमारियां।
पत्ती झुलसा, ज्वार की फसल का खराब होना यह खेत में जल भराव की वजह से होती है।
तना छेदक: यह कीट जनित रोग है इसके लिए कार्बोफ्युरॉन का छिड़काव किया जाता हैं।
टिड्डियों का प्रकोप : टिड्डियों से बचाव के लिए दानेदार फोरेट का छिड़काव करते हैं।
सफेद लट: यह कीट जनित रोग है इसके लिए क्लोटोपाइटरीफॉस का छिड़काव होता हैं।
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